निशान

अक्सर कुछ वादे टूट  जाते हैं।
वक़्त की आँधीमे कुछ नाते छूट जाते है।
पहचानें  हो जाती हैं ग़ुम...
पहेचान में नही आते तुम..
यादे हो जाती हैं सून्न...
चुप्पी में निकल जाते है दिन...
ख़ामोश रह जाती है ज़ुबा...
होती नही है यहा सुबह...
जिनके साथ हँसते रोते ...
वह पहेचान मैं नही आते...
 कुछ वादे टूट गए ,
कुछ नाते छूट गए ,
रेत पे चलते चलते कुछ आगे ही  निकल आए ...
कुछ अपने ढूंढ़ ते ढूढं पीछे चले आए...
और कुछ नाते छूट गई...
पर अभी भी रेत पे उनके निशान बाकी हैं....

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