ठिकाना....

     

जिंदगी की रेस में सब भाग चुके है।
कोई भाग रहा है...
पर मै हु ठहरीं ठहरीं।
भाग नही लिया कभी पर लगता हैं, 
हार गई हूं मैं ,
टूट गई हूं मैं।
ख़ुदसे कही छूट गई हूं मैं,
सभीसे रूठ गई हूं मैं।
कौन हूं में  , कहा जाना है।
पता नहीं ठिकाना मेरा,
डर लगता है मुझको, 
ख़ुदको ख़ोज न पावु तो?
कहा है ठिकाना मेरा,
किस रस्ते पे  है जाना ।
बस एक बात पता है मुझको,
बस चलते ही जाना है।
जहाँ मिलेगा ठिकाना , 
उसी को हैं अपनाना।
बस चलते ही जाना है, मुझको...  
बस चलते ही जाना है।

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